Monday, March 27, 2023

औषधियों में विराजती है नवदुर्गा

औषधियों में विराजती है नवदुर्गा

इन ९ औषधियों में विराजती है नवदुर्गा


मां दुर्गा नौ रूपों में अपने भक्तों का कल्याण कर उनके सारे संकट हर लेती हैं। इस बात का जीता जागता प्रमाण है, संसार में उपलब्ध वे औषधियां, जिन्हें मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के रूप में जाना जाता है।

नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है।

ऐसा माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली और और उनसे बचा रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच कहा गया। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जीवन जी सकता है।
आइए जानते हैं दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है।

👍 1 प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ -

नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई
प्रकारकी समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार
की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।
पथया - जो हित करने वाली है।
कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
अमृता - अमृत के समान
हेमवती - हिमालय पर होने वाली।
चेतकी -चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
श्रेयसी (यशदाता)- शिवा कल्याण करने वाली।

👌२ द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी -
ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वालीऔर स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा
जाता है। यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ
औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी कीआराधना करना चाहिए।

💐३ तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर-*
नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है।
यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।
अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।

🎂४ चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा -*
नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिकरूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है।
कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीड़ितव्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डादेवी की आराधना करना चाहिए।

👍५ पंचम स्कंदमाता यानि अलसी -*
नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक
औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाउता की
आराधना करना चाहिए।

👌६ षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया -*
नवदुर्गा काछठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है।
इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करना चाहिए।
सप्तमं कालरात्री ति महागौरीति चाष्टम।

👌७ सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन-*
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे
महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि केरूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर
करने वालीऔषधि है।
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।

💐८ अष्टम महागौरी यानि तुलसी -*
नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी,
काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता

💐९ नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी -*
नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे
नारायणी याशतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन
उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है।
अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।
सेवा, आराधना और समर्पण का यह पर्व आपके लिए मंगलमय हो।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Thursday, January 26, 2023

काल भैरव अष्टक

काल भैरव अष्टक 
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्
 नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥1॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥2॥
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥3॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥4॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥5॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥6॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥7॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥8॥
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् 

काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को नमस्कार, जिनके चरण कमलों में देवों के राजा, भगवान इंद्र द्वारा पूजनीय हैं; जिसके गले में सर्प, मस्तक पर चन्द्रमा और उनका यह रूप करुणामयी है; जिनकी स्तुति नारद, देवताओं ऋषियों और अन्य योगियों द्वारा की जाती है; जो एक दिगंबर है, जो आकाश को अपनी पोशाक के रूप में पहने हुए है, जो उनके स्वतंत्र होने का प्रतीक है। ( 1 )

काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को, जिनके पास एक लाख सूर्यों का तेज है, जो भक्तों को पुनर्जन्म के चक्र से बचाता है, और जो सर्वोच्च है; जिसका कंठ नीला है, जो हमें हमारी इच्छा पूरी करता है, और जिसके तीन नेत्र हैं; जो स्वयं मृत्युपर्यंत है और जिसकी आंखें कमल के समान हैं; जिसका त्रिशूल संसार को धारण करता है और जो अमर है। (2)

हाथों में त्रिशूल, मटका, फंदा और क्लब धारण करने वाले काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को नमस्कार; जिसका शरीर अन्धकारमय है, जो आदिम प्रभु है, जो अमर है, और संसार के रोगों से मुक्त है; जो बेहद पराक्रमी है और जिसे अद्भुत तांडव नृत्य पसंद है। (3)

भगवान कालभैरव को नमस्कार, काशी के सर्वोच्च स्वामी, जो इच्छाओं और मोक्ष दोनों को प्रदान करते हैं, जिनके पास एक सुखद रूप है; जो अपने भक्तों को प्रिय है, जो सभी लोकों के देवता के रूप में स्थिर है; जो अपनी कमर के चारों ओर एक सोने का कमरवंध पहनता है जिसमें घंटियाँ होती हैं जो उसके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती हैं। ( 4 )

भगवान कालभैरव को नमस्कार, काशी के सर्वोच्च स्वामी, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि धर्म (धार्मिकता) प्रबल है, जो अधर्म (अधर्म) के मार्ग को नष्ट कर देता है; जो हमें कर्म के बंधन से बचाता है, जिससे हमारी आत्मा मुक्त होती है; और जिसके शरीर में सुनहरे रंग के सर्प बंधे हुए हैं। ( 5 )

काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को नमस्कार, जिनके चरण रत्नों के साथ दो स्वर्ण जूतों से सुशोभित हैं; जो शाश्वत, अद्वैत इष्ट देवता (हमारी इच्छाओं को पूरा करने वाले भगवान) हैं; जो यम (मृत्यु के देवता) के अभिमान को नष्ट कर देता है; जिनके भयानक दांत हमें आजाद करते हैं। ( 6 )

काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को नमस्कार, जिनकी तेज गर्जना कमल में जन्मे ब्रह्मा की रचनाओं (अर्थात् हमारे मन के भ्रम) को नष्ट कर देती है; जिसकी एक झलक ही हमारे सारे पापों का नाश करने के लिए काफी है। जो हमें आठ सिद्धियाँ (उपलब्धियाँ) देता है; और जो खोपड़ियों की माला पहनता है। ( 7 )

काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को नमस्कार, जो भूतों और भूतों के नेता हैं, जो महिमा प्रदान करते हैं; जो काशी के लोगों को उनके पापों और धर्मों से मुक्त करता है; जो हमें धर्म के मार्ग पर ले चलता है, जो ब्रह्मांड का सबसे प्राचीन (शाश्वत) स्वामी है। ( 8 )

काशी के सर्वोच्च स्वामी भगवान कालभैरव को नमन। जो लोग कालभैरव अष्टकम के इन आठ श्लोकों को पढ़ते हैं, जो सुंदर है, जो ज्ञान और मुक्ति का स्रोत है, जो व्यक्ति में धार्मिकता के विभिन्न रूपों को बढ़ाता है, जो दु: ख, मोह, दरिद्रता, लोभ, क्रोध और गर्मी का नाश करता है – (मृत्यु के बाद) भगवान कालभैरव (भगवान शिव) के चरणों को प्राप्त करेंगे। ( 9 )🙏🙏🙏

Saturday, January 14, 2023

आदित्यहृदय स्तोत्र

'आदित्यहृदय स्तोत्
विनियोग
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास
ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
करन्यास
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि अंगन्यास
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात।

आदित्यहृदय स्तोत्र

💐ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम्।।1।।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा।।2।।
उधर श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।3।।
'सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।'
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।4।।
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम्।।5।।
'इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है 'आदित्यहृदय'। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।'
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।6।।
'भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं। ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम मंत्रों के द्वारा) पूजन करो।'
सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः।।7।।
'सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।'
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः।।8।।
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः।।9।।
'ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज हैं।'
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः।।10।।
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।11।।
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः।।12।।
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।13।।
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः।।14।।
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशातमन् नमोऽस्तु ते।।15।।
'इन्हीं के नाम आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुर्वणसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू (कल्याण के उदगमस्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने वाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहरकर (दिनकर), रवि (सबकी स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (किरणसमूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। (इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव !) आपको नमस्कार है।'
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः।।16।।
'पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।'
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।।17।।
'आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य ! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने  के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है।'
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।18।।
'(परात्पर रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।'
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः।।19।।
'(परात्पर-रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।'
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः।।20।।
'आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।'
तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।21।।
'आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।'
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।।22।।
'रघुनन्दन ! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।'
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।23।।
'ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।'
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः।।24।।
'(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।'
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव।।25।।
'राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।'
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति।।26।।
'इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।'
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।27।।
'महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे।' यह कहकर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।28।।
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।29।।
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।30।।
उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।31।।
उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की ओर देखा और निशाचराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा 'रघुनन्दन ! अब जल्दी करो।






Wednesday, January 4, 2023

फैसला

चतरई
फैसले की🙏

👁️

 फैसला ही तो है, 
बदल भी जाता है, कभी-कभी,
वक़्त करता है जब फैसला।

और फैसलों से बढ़ते,
फांसलो के बीच की संदो से सरककर,
उच्च सदन तक, पहुंचने लगे हैं,
अब योर ओनर।

और उच्च सदन की भी,
तैयारी है, कि न्याय करने वालों की,
नियुक्ति का फ़ैसला भी अब,
हम ही करेंगे।

करिये साहब, 
ये सब भी हमारा ही,
किया धरा है।

किसी ने कहा था कभी,
मेजोरिटी इस ऑलवेज नॉट राइट।

वो भी तब,
तब मतलब कब?
कब मतलब जब,
वो कहने वाला, खुद,
बहुत बहुमतों से,
भरा पूरा होता था।

साफ बात है,
उसने जो कहा,
ये फ़ैसला करना,
वो खुद ही से सीखा होगा।

मेरा ख्याल है, कि अब से,
मैं भी सीखूंगा,
खुद से ही,
फ़ैसला करना।
बदलते वक्त में।
🙏
इति शुभम
दीपक देहाती





Tuesday, December 20, 2022

क्या लिखूं?

#chatrai

चतरई

क्या लिखूं ?

लिखूं मैं फूल की खुश्बू , या चमन की बयार लिखूं ।
लिखूं मैं सेज़ सपनों की, या उनका इंतज़ार लिखूं ।।
लिखूं मैं ख़ुशी के वो चंद दिन, या उदासी भरी रातों को ।
लिखूं मैं चार दिन की चांदनी, या ज़िन्दगी की बातों को।।
लिखूं घर, द्वार, आंगन और उसमें खेलते सपने,
या घर के बाहर लगी, जंगल जैसी आग को लिखूं।।

वो घर के पास के मंदिर में जो चुपचाप हैं बैठे,
उन मर्यादा पुरुषोत्तम राम को लिखूं।
या श्री राम को लेकर मचे कोहराम को लिखूं।।
मैं झूठ को लिखूं, या सच्चाई को लिखूं,
कैसे हर दिल के बीच बढ़ रही,उस खाई को लिखूं।
मुनासि़ब नही लगता मुझे, खुद को खुद्दार लिख पाना,
और ईमान से कैसे मुझे , मक्कार मैं लिखूं।।

गुलाबी गाल, काले बाल, मजबूत कद काठी को,
गुमराह होकर हाथ में लिये वो लाठी को।
बिना सोचे, बिना समझे क्यों नौज़वान मैं लिखूं।।
सरेआम, झूठ पर झूठ सहकर, चुपचाप सोने वालो को,
किस हैसियत से अब इंसान मैं लिखूं।।

मुझे देखकर हंसना, हंसकर शुभकामना देना,
और आज़मा करके भी, मुझको काम न देना।
उजाडऩे को ख़ुद ही जो बेताब सा दिखे,
उस चमन रखवाले को कैसे बागवान मैं लिखूं।

मैं आशावाद को कब तक सजा, गुलदान मैं लिखूं।।
मेरे हिस्से में आए, कैसे उतने बेईमान मैं लिखूं,
या सुरक्षित हो जाने के लिए,
अब सिर्फ मेरा भारत महान मैं लिखूं।।
दीपक देहाती
@9425150255

Tuesday, November 29, 2022

मज़बूरी का नाम...

चतरई

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी क्यों ?

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी क्यों?
हमारे देश में खासकर हिन्दी भाषी क्षेत्रों के पढ़े लिखे और सभ्य कहे जाने वाले हाईप्रोफाइल लोगों से लेकर, देहातों तक, किशोर विद्यार्थियों व शिक्षकों के मुंह से भी एक जुमला सुना जा सकता है। बड़ा ही प्रचलित भारतीय मुहाबरा बन गया है, यह। मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी। आम तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी के प्रभाव के आगे, बल या दबाव के चलते बेबस हो जाता है। जब प्रतिकार करने की कोई गुंज़ाइश न रहे तो समझौता करते हुए एक आम हिन्दुस्तानी कह देता है कि 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।' बड़ा अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को फटकार लगाता है, तो कर्मचारी क्या कर सकता है? मज़बूरी का नाम.......। ट्रेन लेट है तो सवारी क्या कर सकती है? बिजली चली गई, बाबू रिश्वत मांगता है, नेताजी सुनते नहीं, शहर में गंदगी है, स्कूल वाले मनमानी फीस बसूलते हैं, अस्पताल में डाक्टर ही नहीं है, बेटे ने घर से बेघर कर दिया। ऐसी हजारों हिन्दुस्तानी समस्याओं के आगे वेवश लोगों के लिए सबसे आसान निदान ह 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी'। सचमुच ही यदि आप मज़बूर हैं, तो भला क्या कर सकते हैं, जो मज़बूर नहीं है वो अपनी परेशानी से मुक्ति के ढेरों उपाय करेगा। पर जो मज़बूर है वो क्या करेगा। उसके लिए तो बस मज़बूरी का नाम.......।

  मेंने देखा कि एक ठेकेदार सप्ताहांत पर मज़दूरों को उनकी मज़दूरी का भुगतान कर रहा था, वह मज़दूरों को एक सप्ताह में बनी मज़दूरी के कुल रूपयों से कुछ कटौती कर भुगतान कर रहा था। मज़दूर उदास मन से रूपए लेते जा रहे थे। हफते भर देखे सपनों को पूरा कर पाने में लाचार मज़दूर भी वही कह रहे थे, जो आमोख़ास हिन्दुस्तानी कहता है 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।' परन्तु यहां वास्तविकता तो पूरी ही विपरीत है, तात्कालिक रूप से मज़दूर लाचार है, बेवस है, पर सचमुच वह मज़बूर नहीं है। मज़बूर तो ठेकेदार है, तभी तो वो पूरी मज़दूरी का भुगतान नहीं कर रहा। ठेकेदार ही मज़बूर है, यदि उसने मजदूर का पूरा भुगतान कर दिया तो उसके यहां काम करने वाला मज़दूर अगले सप्ताह दूसरी जग़ह जा सकता है। नुकसान के डर से ठेकेदार उसके कुछ पैसे काट लेता है, और मजदूर को मजबूर बना देता है, जबकि मज़बूर ठेकेदार ही है। लेकिन व्यवस्था ने ऐसा आवरण तैयार कर रखा है कि मज़दूर, सिर्फ मज़बूर दिखता ही नहीं है, वह तो अपने आपको बेहद मज़बूर मानता भी है। मज़बूरी को आत्मसात कर अपने शोषण के लिए मज़बूर अंतस तैयार कर लिया है मज़दूर ने।
  अपनी लाचारी और बेवसी को कमज़ोरी न मानने के लिए महात्मा गांधी से अच्छा और किसका नाम हो सकता है। जब महात्मा गांधी मज़बूर है, तो हमें मज़बूर होने में क्या शर्मिन्दगी? कुल मिलाकर लाचारी, बेबसी, के लिए सबसे उपयुक्त और प्रचलित शीर्षक बन गया है 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी'। मज़बूरी का नाम....... कहकर आप आसानी से संघर्ष से बच सकते हैं, यथास्थिति में रह सकते हैं। कोई भूले से यदि प्रश्र उठाए तो सीधा उत्तर है, मज़बूरी का नाम.......। कुल मिलाकर मज़बूरों का प्रतीक बना लिया हमने महात्मा गांधी को।  मैं भी यही मानता हूं कि महात्मा गांधी सचमुच मज़बूरों के लिये ही हैं।
 पर गांधी उन मज़बूरों के लिए कतई नहीं हैं, जो गांधी के नाम का मिथ्या सहारा लेकर यथास्थिति में रहना चाहते हैं। संघर्ष से बचना चाहते हैं। बल्कि गांधी और उनके सिद्धांत उन मज़बूरों के लिए हैं, जो अपनेे ऊपर होने वाले अत्याचारों और शोषण से निज़ात पाने के लिए अन्य सारे उपाय कर चुके हों, इसके बाद भी वे अपनी बेहतरी के लिए अंतिम प्रयोग करने के लिए तैयार हों। ऐसे मज़बूर लोगों के लिए ब्रह्मास्त्र और सर्वाधिक सिद्ध मंत्र है, 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।Ó यह सत्य है कि मज़बूरों के लिए सिर्फ एक ही नाम है 'महात्मा गांधी'। लेकिन उस संदर्भ में नहीं, जिसके लिए यह मुहाबरा आम हिन्दुस्तानियों में प्रचलित है।
 आज की दुनियां के लिए तो गांधी ही अंतिम रास्ता है, समस्या का अंतिम समाधान है 'महात्मा गांधीÓ, जिसके प्रयोग पर असफलता की भी कोई गुंज़ाइश ही नहीं है। नफरत का पूरी तरह से अंत करने वाला दर्शन है महात्मा गांधी। जहां सारे अस्त्र-शस्त्र विफल हो जाते हैं, वहां ब्रह्मास्त्र हैं, रोशनी की अंतिम उम्मीद है महात्मा गांधी। अहिंसा के सिद्धांत के आगे बड़े-बड़े योद्धा नतमस्तक हुए हैं, और होते रहेंगे। तभी तो सारी दुनियां के लिए एक आदर्श है महात्मा गांधी।
    अलवर्ट आंइस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक ने यूं ही नहीं कह दिया था कि आने वाले लोग यकीन नहीं करेंगे कि गांधी जैसा हाड़-मांस का पुतला सचमुच ही इस ज़मीन पर पैदा हुआ था। विश्व की श्रेष्ठतम् संस्थाओं नें जिसे बीती शताब्दी का महान नेता माना, वो भी सारी दुनियां के संदर्भ में। दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति यूं ही नहीं कह देता कि 'मैं आज जो कुछ हूं महात्मा गांधी की बज़ह से हूं। और आज के अमेरिका की जड़ें महात्मा गांधी के भारत और भारतीय स्वतंत्रता के अहिंसा आंदोलन में हैं, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया।' अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने में महात्मा गांधी के योगदान को सराहने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2007 से महात्मा गांधी के जन्म दिन 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित किया, इस सिलसिले में भारत द्वारा रखे प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी अधिक देशों ने सह-प्रायोजित किया था। इनमें अ$फगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा अ$फरीका और अमरीका महाद्वीप के कई देश शामिल थे। मौज़ूदा व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना मतदान के ही यह प्रस्ताव पास हुआ था। और अब सारी दुनिया गांधी के जन्म दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाती है। जऱा सोचिये कि सारी दुनिया ने गांधी को किस रूप में अपनाया और हम कहते हैं मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।
   इससे ज्य़ादा दुर्भाग्य और क्या होगा? यह मुहाबरा जिस संदर्भ में प्रचलित हुआ, उससे तो यही सिद्ध होता है, कि अब तक गांधीजी को आमजन तक सही रूप में नहीं पहुंचा सके। किस-किसको पता है कि, मोहनदास करमचंद गांधी ने कब और क्यों कहा कि कोई एक गाल पर चांटा मारे तो उसके आगे अपना दूसरा गाल कर दो, फिर भी छोटे-छोटे बच्चों को तक को इसे मुहाबरे के रूप में प्रयोग करते देखा जा सकता है। ये कौन सिखाता है, कहां से चल जाता है? जबकि सारी दुनिया यह मानती है कि गांधी अंतिम समाधान हैं। किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं लिखा कि गांधी ने समस्याऐं पैदा की। कम से कम भारत में तो अब तक किसी अध्यापक को यह पाठ््यक्रम नहीं सोंपा गया होगा, जिसकी सहायता से विद्यार्थिओं को यह सिखाया जा सके कि देश की अधिकांश समस्याओं की जड़ महात्मा गांधी हैं। फिर मेरे देश का नौज़वान जो कालेज से ग्रेजुएट होकर निकलता है, और अच्छे सूट-बूट पहनना सीख जाता है, वह किस जानकारी और शोध के आधार पर सारी दुनिया के आदर्श महात्मा गांधी को गाली देने लगता है? गांधी गलत थे। यह कौन अध्यापक सिखा देते हैं? आग्रह इतना ही है कि हमारे राष्ट्रपिता के बारे में कोई भी टिप्पणी तभी करें, जबकि संदर्भित बिषय पर आपकी पक्की जानकारी हो और ऐसा ही आग्रह अन्य लोगों से करें।
 साथ ही बहुत अधिक दु:ख होता है, जब देश का नौज़वान और वह भी शिक्षित नौज़वान जिसके ऊपर दूसरों को सिखाने की जि़म्मेदारी हो, खुद शोषण और ग़ैरबराबरी सहता रहता है, और संघर्ष से बचने के लिए कह देता है, मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी। अब तो आसानी से यह समझा जा सकता है कि सारी दुनियां में भारत के सम्मान के प्रमुख कारकों (अनेकता में एकता, विश्व का सबसे बड़ा सफल लोकतंत्र, धर्म निरपेक्ष राज्य व्यवस्था) में एक प्रमुख कारक है-मोहनदास करमचंद गांधी और उनका जीवन दर्शन।
दीपक तिवारी
अध्यापक
मो. 9425150255

Thursday, November 24, 2022

गालियां मुझे अतिप्रिय हैं💐💐💐

चतरई💐💐💐

व्यापार मेें तय होती हैं, सारी कीमतें,
क्या लेना है, तो क्या देना है।
और देने के बदले, क्या लेना है?
कितना कुछ कम ज्यादा हो सकता है, 
यह भी लगभग निष्चित ही है।

निश्चित हैं, सारी सीमाऐं रिश्तों की भी
और मित्रता की भी, कुछ सीमाऐं हैं?
हमराह और हमराज़ होने की
अपेक्षाओं और उम्मीदों के बीच।

प्रेम भी बदले में, आस लगाता है प्रेम की,
मैंने किसी भी नफरत करने वाले को,
कभी प्रेम से नहीं देखा।

पर घर उम्मीद है, एक विस्तार की,
अनन्त विस्तार की, 
पर वो भी चार दीवारों के घिरा हुआ विस्तार?
विस्तार की सीमाऐं हैं,
बिल्कुल मेरे धर्म और देश की तरह।

क्या होना है, कितना होना है?
कितना बोलना-सुनना है,
यह भी तय है, कीमतों की तरह।

लेकिन गालियां कितनी अलग हैं?
देना सब चाहते हैं,
लेना कोई नहीं।

और सच,
सच भी अजीब ही है,
बोलना सब चाहते हैं,
पर सच सुनने की बारी आते ही,
असहज हो जाते हैं, मुश्किल में आ जाते हैं,
नहीं सुनना चाहते, सिर्फ बोलना चाहते हैं सच,
बिल्कुल गालियों की तरह।

इसलिए व्यापार यदि समीकरण है,
तो सच बिल्कुल बराबर है, गालियों के।

गालियाँ मुझे अतिप्रिय हैं।
किन्तु 100 तक ही?

दीपक देहाती


अग्रिम धन्यवाद के साथ अपेक्षित है,
कि आप हमें अनुग्रहित करेंगे,,
अपनी शिकायत अथवा सुझाव देकर।
जिससे आपका मार्गदर्शन भी सबको मिल सके।
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