मजबूरी का नाम महात्मा गांधी क्यों ?
मजबूरी का नाम महात्मा गांधी क्यों?
हमारे देश में खासकर हिन्दी भाषी क्षेत्रों के पढ़े लिखे और सभ्य कहे जाने वाले हाईप्रोफाइल लोगों से लेकर, देहातों तक, किशोर विद्यार्थियों व शिक्षकों के मुंह से भी एक जुमला सुना जा सकता है। बड़ा ही प्रचलित भारतीय मुहाबरा बन गया है, यह। मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी। आम तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी के प्रभाव के आगे, बल या दबाव के चलते बेबस हो जाता है। जब प्रतिकार करने की कोई गुंज़ाइश न रहे तो समझौता करते हुए एक आम हिन्दुस्तानी कह देता है कि 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।' बड़ा अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को फटकार लगाता है, तो कर्मचारी क्या कर सकता है? मज़बूरी का नाम.......। ट्रेन लेट है तो सवारी क्या कर सकती है? बिजली चली गई, बाबू रिश्वत मांगता है, नेताजी सुनते नहीं, शहर में गंदगी है, स्कूल वाले मनमानी फीस बसूलते हैं, अस्पताल में डाक्टर ही नहीं है, बेटे ने घर से बेघर कर दिया। ऐसी हजारों हिन्दुस्तानी समस्याओं के आगे वेवश लोगों के लिए सबसे आसान निदान ह 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी'। सचमुच ही यदि आप मज़बूर हैं, तो भला क्या कर सकते हैं, जो मज़बूर नहीं है वो अपनी परेशानी से मुक्ति के ढेरों उपाय करेगा। पर जो मज़बूर है वो क्या करेगा। उसके लिए तो बस मज़बूरी का नाम.......।
अलवर्ट आंइस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक ने यूं ही नहीं कह दिया था कि आने वाले लोग यकीन नहीं करेंगे कि गांधी जैसा हाड़-मांस का पुतला सचमुच ही इस ज़मीन पर पैदा हुआ था। विश्व की श्रेष्ठतम् संस्थाओं नें जिसे बीती शताब्दी का महान नेता माना, वो भी सारी दुनियां के संदर्भ में। दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति यूं ही नहीं कह देता कि 'मैं आज जो कुछ हूं महात्मा गांधी की बज़ह से हूं। और आज के अमेरिका की जड़ें महात्मा गांधी के भारत और भारतीय स्वतंत्रता के अहिंसा आंदोलन में हैं, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया।' अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने में महात्मा गांधी के योगदान को सराहने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2007 से महात्मा गांधी के जन्म दिन 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित किया, इस सिलसिले में भारत द्वारा रखे प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी अधिक देशों ने सह-प्रायोजित किया था। इनमें अ$फगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा अ$फरीका और अमरीका महाद्वीप के कई देश शामिल थे। मौज़ूदा व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना मतदान के ही यह प्रस्ताव पास हुआ था। और अब सारी दुनिया गांधी के जन्म दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाती है। जऱा सोचिये कि सारी दुनिया ने गांधी को किस रूप में अपनाया और हम कहते हैं मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।
इससे ज्य़ादा दुर्भाग्य और क्या होगा? यह मुहाबरा जिस संदर्भ में प्रचलित हुआ, उससे तो यही सिद्ध होता है, कि अब तक गांधीजी को आमजन तक सही रूप में नहीं पहुंचा सके। किस-किसको पता है कि, मोहनदास करमचंद गांधी ने कब और क्यों कहा कि कोई एक गाल पर चांटा मारे तो उसके आगे अपना दूसरा गाल कर दो, फिर भी छोटे-छोटे बच्चों को तक को इसे मुहाबरे के रूप में प्रयोग करते देखा जा सकता है। ये कौन सिखाता है, कहां से चल जाता है? जबकि सारी दुनिया यह मानती है कि गांधी अंतिम समाधान हैं। किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं लिखा कि गांधी ने समस्याऐं पैदा की। कम से कम भारत में तो अब तक किसी अध्यापक को यह पाठ््यक्रम नहीं सोंपा गया होगा, जिसकी सहायता से विद्यार्थिओं को यह सिखाया जा सके कि देश की अधिकांश समस्याओं की जड़ महात्मा गांधी हैं। फिर मेरे देश का नौज़वान जो कालेज से ग्रेजुएट होकर निकलता है, और अच्छे सूट-बूट पहनना सीख जाता है, वह किस जानकारी और शोध के आधार पर सारी दुनिया के आदर्श महात्मा गांधी को गाली देने लगता है? गांधी गलत थे। यह कौन अध्यापक सिखा देते हैं? आग्रह इतना ही है कि हमारे राष्ट्रपिता के बारे में कोई भी टिप्पणी तभी करें, जबकि संदर्भित बिषय पर आपकी पक्की जानकारी हो और ऐसा ही आग्रह अन्य लोगों से करें।
साथ ही बहुत अधिक दु:ख होता है, जब देश का नौज़वान और वह भी शिक्षित नौज़वान जिसके ऊपर दूसरों को सिखाने की जि़म्मेदारी हो, खुद शोषण और ग़ैरबराबरी सहता रहता है, और संघर्ष से बचने के लिए कह देता है, मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी। अब तो आसानी से यह समझा जा सकता है कि सारी दुनियां में भारत के सम्मान के प्रमुख कारकों (अनेकता में एकता, विश्व का सबसे बड़ा सफल लोकतंत्र, धर्म निरपेक्ष राज्य व्यवस्था) में एक प्रमुख कारक है-मोहनदास करमचंद गांधी और उनका जीवन दर्शन।
दीपक तिवारी
अध्यापक
मो. 9425150255
हमारे देश में खासकर हिन्दी भाषी क्षेत्रों के पढ़े लिखे और सभ्य कहे जाने वाले हाईप्रोफाइल लोगों से लेकर, देहातों तक, किशोर विद्यार्थियों व शिक्षकों के मुंह से भी एक जुमला सुना जा सकता है। बड़ा ही प्रचलित भारतीय मुहाबरा बन गया है, यह। मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी। आम तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी के प्रभाव के आगे, बल या दबाव के चलते बेबस हो जाता है। जब प्रतिकार करने की कोई गुंज़ाइश न रहे तो समझौता करते हुए एक आम हिन्दुस्तानी कह देता है कि 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।' बड़ा अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को फटकार लगाता है, तो कर्मचारी क्या कर सकता है? मज़बूरी का नाम.......। ट्रेन लेट है तो सवारी क्या कर सकती है? बिजली चली गई, बाबू रिश्वत मांगता है, नेताजी सुनते नहीं, शहर में गंदगी है, स्कूल वाले मनमानी फीस बसूलते हैं, अस्पताल में डाक्टर ही नहीं है, बेटे ने घर से बेघर कर दिया। ऐसी हजारों हिन्दुस्तानी समस्याओं के आगे वेवश लोगों के लिए सबसे आसान निदान ह 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी'। सचमुच ही यदि आप मज़बूर हैं, तो भला क्या कर सकते हैं, जो मज़बूर नहीं है वो अपनी परेशानी से मुक्ति के ढेरों उपाय करेगा। पर जो मज़बूर है वो क्या करेगा। उसके लिए तो बस मज़बूरी का नाम.......।
मेंने देखा कि एक ठेकेदार सप्ताहांत पर मज़दूरों को उनकी मज़दूरी का भुगतान कर रहा था, वह मज़दूरों को एक सप्ताह में बनी मज़दूरी के कुल रूपयों से कुछ कटौती कर भुगतान कर रहा था। मज़दूर उदास मन से रूपए लेते जा रहे थे। हफते भर देखे सपनों को पूरा कर पाने में लाचार मज़दूर भी वही कह रहे थे, जो आमोख़ास हिन्दुस्तानी कहता है 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।' परन्तु यहां वास्तविकता तो पूरी ही विपरीत है, तात्कालिक रूप से मज़दूर लाचार है, बेवस है, पर सचमुच वह मज़बूर नहीं है। मज़बूर तो ठेकेदार है, तभी तो वो पूरी मज़दूरी का भुगतान नहीं कर रहा। ठेकेदार ही मज़बूर है, यदि उसने मजदूर का पूरा भुगतान कर दिया तो उसके यहां काम करने वाला मज़दूर अगले सप्ताह दूसरी जग़ह जा सकता है। नुकसान के डर से ठेकेदार उसके कुछ पैसे काट लेता है, और मजदूर को मजबूर बना देता है, जबकि मज़बूर ठेकेदार ही है। लेकिन व्यवस्था ने ऐसा आवरण तैयार कर रखा है कि मज़दूर, सिर्फ मज़बूर दिखता ही नहीं है, वह तो अपने आपको बेहद मज़बूर मानता भी है। मज़बूरी को आत्मसात कर अपने शोषण के लिए मज़बूर अंतस तैयार कर लिया है मज़दूर ने।
अपनी लाचारी और बेवसी को कमज़ोरी न मानने के लिए महात्मा गांधी से अच्छा और किसका नाम हो सकता है। जब महात्मा गांधी मज़बूर है, तो हमें मज़बूर होने में क्या शर्मिन्दगी? कुल मिलाकर लाचारी, बेबसी, के लिए सबसे उपयुक्त और प्रचलित शीर्षक बन गया है 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी'। मज़बूरी का नाम....... कहकर आप आसानी से संघर्ष से बच सकते हैं, यथास्थिति में रह सकते हैं। कोई भूले से यदि प्रश्र उठाए तो सीधा उत्तर है, मज़बूरी का नाम.......। कुल मिलाकर मज़बूरों का प्रतीक बना लिया हमने महात्मा गांधी को। मैं भी यही मानता हूं कि महात्मा गांधी सचमुच मज़बूरों के लिये ही हैं।पर गांधी उन मज़बूरों के लिए कतई नहीं हैं, जो गांधी के नाम का मिथ्या सहारा लेकर यथास्थिति में रहना चाहते हैं। संघर्ष से बचना चाहते हैं। बल्कि गांधी और उनके सिद्धांत उन मज़बूरों के लिए हैं, जो अपनेे ऊपर होने वाले अत्याचारों और शोषण से निज़ात पाने के लिए अन्य सारे उपाय कर चुके हों, इसके बाद भी वे अपनी बेहतरी के लिए अंतिम प्रयोग करने के लिए तैयार हों। ऐसे मज़बूर लोगों के लिए ब्रह्मास्त्र और सर्वाधिक सिद्ध मंत्र है, 'मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।Ó यह सत्य है कि मज़बूरों के लिए सिर्फ एक ही नाम है 'महात्मा गांधी'। लेकिन उस संदर्भ में नहीं, जिसके लिए यह मुहाबरा आम हिन्दुस्तानियों में प्रचलित है।आज की दुनियां के लिए तो गांधी ही अंतिम रास्ता है, समस्या का अंतिम समाधान है 'महात्मा गांधीÓ, जिसके प्रयोग पर असफलता की भी कोई गुंज़ाइश ही नहीं है। नफरत का पूरी तरह से अंत करने वाला दर्शन है महात्मा गांधी। जहां सारे अस्त्र-शस्त्र विफल हो जाते हैं, वहां ब्रह्मास्त्र हैं, रोशनी की अंतिम उम्मीद है महात्मा गांधी। अहिंसा के सिद्धांत के आगे बड़े-बड़े योद्धा नतमस्तक हुए हैं, और होते रहेंगे। तभी तो सारी दुनियां के लिए एक आदर्श है महात्मा गांधी।
अलवर्ट आंइस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक ने यूं ही नहीं कह दिया था कि आने वाले लोग यकीन नहीं करेंगे कि गांधी जैसा हाड़-मांस का पुतला सचमुच ही इस ज़मीन पर पैदा हुआ था। विश्व की श्रेष्ठतम् संस्थाओं नें जिसे बीती शताब्दी का महान नेता माना, वो भी सारी दुनियां के संदर्भ में। दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति यूं ही नहीं कह देता कि 'मैं आज जो कुछ हूं महात्मा गांधी की बज़ह से हूं। और आज के अमेरिका की जड़ें महात्मा गांधी के भारत और भारतीय स्वतंत्रता के अहिंसा आंदोलन में हैं, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया।' अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने में महात्मा गांधी के योगदान को सराहने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2007 से महात्मा गांधी के जन्म दिन 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित किया, इस सिलसिले में भारत द्वारा रखे प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी अधिक देशों ने सह-प्रायोजित किया था। इनमें अ$फगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा अ$फरीका और अमरीका महाद्वीप के कई देश शामिल थे। मौज़ूदा व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना मतदान के ही यह प्रस्ताव पास हुआ था। और अब सारी दुनिया गांधी के जन्म दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाती है। जऱा सोचिये कि सारी दुनिया ने गांधी को किस रूप में अपनाया और हम कहते हैं मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी।
इससे ज्य़ादा दुर्भाग्य और क्या होगा? यह मुहाबरा जिस संदर्भ में प्रचलित हुआ, उससे तो यही सिद्ध होता है, कि अब तक गांधीजी को आमजन तक सही रूप में नहीं पहुंचा सके। किस-किसको पता है कि, मोहनदास करमचंद गांधी ने कब और क्यों कहा कि कोई एक गाल पर चांटा मारे तो उसके आगे अपना दूसरा गाल कर दो, फिर भी छोटे-छोटे बच्चों को तक को इसे मुहाबरे के रूप में प्रयोग करते देखा जा सकता है। ये कौन सिखाता है, कहां से चल जाता है? जबकि सारी दुनिया यह मानती है कि गांधी अंतिम समाधान हैं। किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं लिखा कि गांधी ने समस्याऐं पैदा की। कम से कम भारत में तो अब तक किसी अध्यापक को यह पाठ््यक्रम नहीं सोंपा गया होगा, जिसकी सहायता से विद्यार्थिओं को यह सिखाया जा सके कि देश की अधिकांश समस्याओं की जड़ महात्मा गांधी हैं। फिर मेरे देश का नौज़वान जो कालेज से ग्रेजुएट होकर निकलता है, और अच्छे सूट-बूट पहनना सीख जाता है, वह किस जानकारी और शोध के आधार पर सारी दुनिया के आदर्श महात्मा गांधी को गाली देने लगता है? गांधी गलत थे। यह कौन अध्यापक सिखा देते हैं? आग्रह इतना ही है कि हमारे राष्ट्रपिता के बारे में कोई भी टिप्पणी तभी करें, जबकि संदर्भित बिषय पर आपकी पक्की जानकारी हो और ऐसा ही आग्रह अन्य लोगों से करें।
साथ ही बहुत अधिक दु:ख होता है, जब देश का नौज़वान और वह भी शिक्षित नौज़वान जिसके ऊपर दूसरों को सिखाने की जि़म्मेदारी हो, खुद शोषण और ग़ैरबराबरी सहता रहता है, और संघर्ष से बचने के लिए कह देता है, मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी। अब तो आसानी से यह समझा जा सकता है कि सारी दुनियां में भारत के सम्मान के प्रमुख कारकों (अनेकता में एकता, विश्व का सबसे बड़ा सफल लोकतंत्र, धर्म निरपेक्ष राज्य व्यवस्था) में एक प्रमुख कारक है-मोहनदास करमचंद गांधी और उनका जीवन दर्शन।
दीपक तिवारी
अध्यापक
मो. 9425150255
अटल सत्य ,,,,,मजबूरी का नाम .......नही है महात्मा गांधी बल्कि संघर्ष का नाम है महात्मा गाँधी....!!!!!👌👌👌👌
ReplyDelete🙏 धन्यवाद, आप शेयर भी कर सकते हैं💐💐💐
ReplyDelete