चतरई
क्या लिखूं ?
लिखूं मैं फूल की खुश्बू , या चमन की बयार लिखूं ।
लिखूं मैं सेज़ सपनों की, या उनका इंतज़ार लिखूं ।।
लिखूं मैं ख़ुशी के वो चंद दिन, या उदासी भरी रातों को ।
लिखूं मैं चार दिन की चांदनी, या ज़िन्दगी की बातों को।।
लिखूं घर, द्वार, आंगन और उसमें खेलते सपने,
या घर के बाहर लगी, जंगल जैसी आग को लिखूं।।
वो घर के पास के मंदिर में जो चुपचाप हैं बैठे,
उन मर्यादा पुरुषोत्तम राम को लिखूं।
या श्री राम को लेकर मचे कोहराम को लिखूं।।
मैं झूठ को लिखूं, या सच्चाई को लिखूं,
कैसे हर दिल के बीच बढ़ रही,उस खाई को लिखूं।
मुनासि़ब नही लगता मुझे, खुद को खुद्दार लिख पाना,
और ईमान से कैसे मुझे , मक्कार मैं लिखूं।।
गुलाबी गाल, काले बाल, मजबूत कद काठी को,
गुमराह होकर हाथ में लिये वो लाठी को।
बिना सोचे, बिना समझे क्यों नौज़वान मैं लिखूं।।
सरेआम, झूठ पर झूठ सहकर, चुपचाप सोने वालो को,
किस हैसियत से अब इंसान मैं लिखूं।।
मुझे देखकर हंसना, हंसकर शुभकामना देना,
और आज़मा करके भी, मुझको काम न देना।
उजाडऩे को ख़ुद ही जो बेताब सा दिखे,
उस चमन रखवाले को कैसे बागवान मैं लिखूं।
मैं आशावाद को कब तक सजा, गुलदान मैं लिखूं।।
मेरे हिस्से में आए, कैसे उतने बेईमान मैं लिखूं,
या सुरक्षित हो जाने के लिए,
अब सिर्फ मेरा भारत महान मैं लिखूं।।
लिखूं मैं सेज़ सपनों की, या उनका इंतज़ार लिखूं ।।
लिखूं मैं ख़ुशी के वो चंद दिन, या उदासी भरी रातों को ।
लिखूं मैं चार दिन की चांदनी, या ज़िन्दगी की बातों को।।
लिखूं घर, द्वार, आंगन और उसमें खेलते सपने,
या घर के बाहर लगी, जंगल जैसी आग को लिखूं।।
वो घर के पास के मंदिर में जो चुपचाप हैं बैठे,
उन मर्यादा पुरुषोत्तम राम को लिखूं।
या श्री राम को लेकर मचे कोहराम को लिखूं।।
मैं झूठ को लिखूं, या सच्चाई को लिखूं,
कैसे हर दिल के बीच बढ़ रही,उस खाई को लिखूं।
मुनासि़ब नही लगता मुझे, खुद को खुद्दार लिख पाना,
और ईमान से कैसे मुझे , मक्कार मैं लिखूं।।
गुलाबी गाल, काले बाल, मजबूत कद काठी को,
गुमराह होकर हाथ में लिये वो लाठी को।
बिना सोचे, बिना समझे क्यों नौज़वान मैं लिखूं।।
सरेआम, झूठ पर झूठ सहकर, चुपचाप सोने वालो को,
किस हैसियत से अब इंसान मैं लिखूं।।
मुझे देखकर हंसना, हंसकर शुभकामना देना,
और आज़मा करके भी, मुझको काम न देना।
उजाडऩे को ख़ुद ही जो बेताब सा दिखे,
उस चमन रखवाले को कैसे बागवान मैं लिखूं।
मैं आशावाद को कब तक सजा, गुलदान मैं लिखूं।।
मेरे हिस्से में आए, कैसे उतने बेईमान मैं लिखूं,
या सुरक्षित हो जाने के लिए,
अब सिर्फ मेरा भारत महान मैं लिखूं।।
दीपक देहाती
@9425150255