Thursday, November 24, 2022

गालियां मुझे अतिप्रिय हैं💐💐💐

चतरई💐💐💐

व्यापार मेें तय होती हैं, सारी कीमतें,
क्या लेना है, तो क्या देना है।
और देने के बदले, क्या लेना है?
कितना कुछ कम ज्यादा हो सकता है, 
यह भी लगभग निष्चित ही है।

निश्चित हैं, सारी सीमाऐं रिश्तों की भी
और मित्रता की भी, कुछ सीमाऐं हैं?
हमराह और हमराज़ होने की
अपेक्षाओं और उम्मीदों के बीच।

प्रेम भी बदले में, आस लगाता है प्रेम की,
मैंने किसी भी नफरत करने वाले को,
कभी प्रेम से नहीं देखा।

पर घर उम्मीद है, एक विस्तार की,
अनन्त विस्तार की, 
पर वो भी चार दीवारों के घिरा हुआ विस्तार?
विस्तार की सीमाऐं हैं,
बिल्कुल मेरे धर्म और देश की तरह।

क्या होना है, कितना होना है?
कितना बोलना-सुनना है,
यह भी तय है, कीमतों की तरह।

लेकिन गालियां कितनी अलग हैं?
देना सब चाहते हैं,
लेना कोई नहीं।

और सच,
सच भी अजीब ही है,
बोलना सब चाहते हैं,
पर सच सुनने की बारी आते ही,
असहज हो जाते हैं, मुश्किल में आ जाते हैं,
नहीं सुनना चाहते, सिर्फ बोलना चाहते हैं सच,
बिल्कुल गालियों की तरह।

इसलिए व्यापार यदि समीकरण है,
तो सच बिल्कुल बराबर है, गालियों के।

गालियाँ मुझे अतिप्रिय हैं।
किन्तु 100 तक ही?

दीपक देहाती


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